क्यूँ फ़िज़ूल की बातों पर अड़े हों
ये सुहाना मौसम रूहानी सी हवाएं
दो पल सुकून में लिपटे
ज़िंदगी को तहे दिल से शुक्रिया कहे
बारिश का मौसम
मिट्टी की सोंधी खुशबु
फ़ुर्सत के दो पल
और
एक कप चाय
थोड़ी सी सहूलियत मिली हैं
ये शहर भी अनजान सा हैं
चलिए रास्तों से कुछ गुफ़्तुगू
करते है
ये दरख़्त
अक्सर हवाओं से
कुछ बाते किया करते है
ना जाने ज़िंदगी में
कितने खाली कितने भरे हैं
पर हर पल हर पतझड़ में
सफर के भागीदार हैं