अलसाये सा हूँ
अलमस्त मेरे ये ख़्याल
कुछ तो मैं बोलूं
मगर चुप सी ख़ानाबदोश
ये हवायें
कहाँ चुप सा रहूं
ये धुन जो उनींदे से जगा रही है
कल क्या हो किसको फिकर है
ठौर ठिकाने से दूर
यूँ ही अब मैं बैरागी सा जियूं
राहों में मलंग मलंग फिरता जाऊं