Monday 27 February 2017

मैं ज़िन्दगी की तलाश में हूँ 
पुराने सहमे से हताश में हूँ 
नए नए अवसर की आस में हूँ 
मगर छूटे डगर के पास ही हूँ 

मंज़िल के रास्ते मिलने की आशा में हूँ 
लक्ष्य तक ना पहुँचने की निराशा में हूँ 
बाधाओं के ख़त्म होने का इंतजार है   
मगर हर जगह रास्तों का इंतशार है 

मंज़र के सच ना होने का डर है 
मगर संभलने के लिए भी दर है 
अपने पास तरकीबें बहुत सारी है 
पर सफर में सब की सब जारी है

टूट चुका हूँ अंदर से अब मैं 
छूट चुके है अब सब अपने 
फिर भी ना जाने क्यों 
मैं ज़िन्दगी की तलाश में हूँ 

Friday 24 February 2017

नन्हे हाथों से बनी वो कागज की नावें 
जो कभी थी बचपन की धुंधली यादें 

उन चुस्त गलियों में था कभी बल्लों का शोर 
जिस गली में था शर्मा अंकल के घर का झोर 

नुक्कड़ की चाय का भी अपना अजीब रंग था 
जब ठहाकों से भरा मित्र मण्डली का संग था 

कुछ आम के पेड़ों की डालिया तभी टूटती थी 
जब दोस्तों की टोलियां उस पर छूटती थी 

जब जब बॉल लाने की बारी हमारी हुआ करती थी 
तभी शुक्ला अंकल के कुत्ते की रखवाली हुआ करती थी 

कुछ दोस्तों के टिफ़िन कभी बचते नहीं थे 
क्यों की कुछ यारों के पेट कभी भरते नहीं थे 

हमेशा स्कूल के आने की घंटी सजा लगती थी 
तो वही स्कूल के जाने की घंटी मजा लगती थी

जब इम्तिहान के दिन पास आया करते थे 
तभी सब दोस्तों को फ़ोन जाया करते थे  

गर्मियों में बर्फ के गोलों की चुस्कियों का मजा भी अलग था 
पर उसके लिए घरवालों से पैसे लेने की सजा भी अलग थी

जब हैरी पॉटर की जादुई दुनिया में इतने खो जाते थे 
पता नहीं कब जादु के सपने देखते देखते सो जाते थे 

रविवार का इंतज़ार जब सोमवार से ही शुरू हो जाता था 
तब पता नहीं रविवार कब सोमवार में बदल जाता था  

जब सारा सारा दिन मारियो खेलने में निकल जाता था  
तो वही रात घरवालों की फटकार में गुजर जाया करती थी 

Wednesday 22 February 2017


कुछ पेड़ो की डालियों पर कबूतर जा बैठे है 
ना जाने कौनसे ख्वाब अपने अंदर पाल बैठे है 
अतीत की सदियों से बस इंतज़ार करते रहते है 
क्यों इतने ग़मों को अपने अंदर सहते रहते है। 

Sunday 19 February 2017

उस नाविक के वजूद को तलाश कर 
जो तेरी मँझधार में फँसी नाव को निकालकर
किनारो पर पहुँचाने की चुनौती स्वीकार करे 
क्यों रुका है तू, किसका इंतज़ार कर रहा है 
उस कुशल नाविक की खोज पर निकल तू 
जिसे तूफानों के सामने आने का भय नहीं 
जो पानी की गहराई से चित परिचित हो 
निकल पड़ तू उन जोखिम भरे रास्तों पर 
लगा दे समय अपना पूरा इन कोशिशों में 
खोज निकाल तू उस केवट को पाताल से भी 
आज ही अभी इसी समय निकाल ले तू 
अपनी कश्ती को इन मँझधारों के भँवर से 

कुछ कागज़ की नावों से समंदर की सुनामी में भी 
दरिया को पार करने के बुलंद इरादे रखते है। 

कश्ती कागज की ही सही पर समंदर की लहरों पर 
कुछ दूरी तक तैरने के बुलंद हौसले रखती है।   

Saturday 18 February 2017

कुछ नावों के बेड़े समंदर के तूफानों से डर कर 
लहरों के उफानों पर गोते नहीं लगाते कभी भी 
ऐसी नावें प्रतीक्षाओं से मंज़िले कभी पार नहीं पाती।  

Thursday 16 February 2017

बस्ती में कुछ कदमताल हुआ  
बरसों बाद कुछ आहटे सुनी 
देखा तो कुछ नेताओं की 
चप्पलें बस्ती में घिस रही थी 
कुछ कीमती चप्पलें बस्ती की
कीचड़ में गोते लगा रही थी 
साहब आये है कुछ शोर मचा
जरा देखे साहब के चाल चलन 
वाह साहब बहुत तरक्की हुई है 
अतीत को भी मात दे दी आपने 
कुछ वादे इरादे के साथ आये है 
अपने भावी जीवन के निवेश को 
सुरझित करने का खेल लाये है 
बहुत चला रुपया बस्ती का खेल 
अब सब खेल पुराने हो चले 
जिस अतीत की बस्ती में आये थे 
साहब अब वो बस्ती बदल चुकी है। 




















Wednesday 15 February 2017

किसी ने मुझसे पूछा 
'सफ़लता' क्या है तो 
मैंने उसे जवाब दिया 
जब असफ़लता अपने 
चरम शिखर पर हो और 
उस शिखर का जो नतीज़ा 
निकले वह है 'सफलता' 
तो फिर उसने पूछा 
'असफलता' क्या है तो  
मैंने उसे उत्तर दिया 
जब सफलता के शिखर 
पर पहुँच कर इंसान 
उन्ही असफलताओं को 
नज़रअंदाज़ कर सफलता 
के जश्न में डूब जाता है  
तब वह है 'असफलता'

Tuesday 14 February 2017

कुछ पेड़ो की शाखाये खाली है 
कुछ पुराने पत्ते नीरस हों चले 
कुछ नए पत्तों के रंग समेटने 
बदरंग डालियों की पीड़ा को 
समझता दरख़्त भी जानता 
कुछ समय भर के हमराही है  
जीता उन पलों को खुशियों से 
पत्तों की टहनियों से भरा वृक्ष 
कभी भय से जीता नहीं जीवन 
जीवन के कुछ पल दो पल कभी
गम तो कभी खुशियों से भरे है 
हर पल आनंद के आघोष में जियें 
क्यों की पल भर की ज़िन्दगी में 
कुछ पल के मेहमान बने है 













किस जीत की राह देख रहा है तू 
जिस रणभूमि में कदम तेरे नहीं 
जिस युद्ध में तू आजतक दिखा नहीं 
उस रण के मैदान में कभी लड़ा नहीं 
मृत्यु के भय से छोड़ दिया जो संग्राम
उस युद्ध के चक्रव्यूह में जो फंस गया 
रणभूमि की रणनीति को समझा नहीं
गढ़ की दीवारों को जो भेद नहीं सका 
अहंकार के हठ में दो गज जंमीन भी 
दुश्मनो से तू कभी हड़प नहीं पाया 
जिस गढ़ को फतह करने के सपने 
सँजो रहा है जो तुझे कभी मिलेगा नहीं 




Friday 10 February 2017

अनजान सा मुसाफिर हूँ 
कुछ रास्ते भटक गया हूँ 
जिन शहरों को पीछे छोड़ा था कभी 
उन्ही रास्तों पर आज फिर सफर कर रहा हूँ 
अजनबियों की भीड़ में कुछ तन्हा सा हो चला हूँ 
कुछ आशियाने थे अपने कभी 
अब वही नीड़ किसी ओर के हमराही हो चले है  
कुछ अनसुनी अनजानी कहानियां सफर के  
किसी पड़ाव पर छोड़ आया हूँ 
बीते हुए कल की स्मृतियों को भुला कर 
कुछ कदम आगे बढ़ा दिए है 
क्यों की आज भी कुछ सफर अधूरे है। 



Thursday 9 February 2017

"ज़िन्दगी की एक छोटी सी भूल से ये मत समझिए की आप अपनी,
 ज़िन्दगी में सब कुछ खो चुके है ये देखिये की उस छोटी से भूल ने 
 आपको कितने सफल दरवाजो की चाबी दी है। " 

कुछ रास्ते कभी मिलते नहीं 
कभी हम चलते नहीं तो 
कभी तुम रुकते नहीं 
ज़िन्दगी की उलझनों में 
अतीत के कुछ पन्ने हम से छूट गए 
तो कुछ पन्ने तुमसे घूम गए 
इन राहो के दरमियान हरेक पल 
बीते हुए कल के खोफ़ में 
संजीदगी से जी नहीं पाया 
कुछ राहों की चाल कभी 
मोड़ किनारो पर आयी नहीं 
हमारी चाल राहों के झोर 
से कभी आगे चली नहीं 





Wednesday 8 February 2017

कुछ पगडंडियों की मंज़िले,
डगर के किसी मोड़ पर होती है। 
ज़िन्दगी की उलझनों से परे 
आप अपनी राहों को समेटे
और मंज़िलों की राहो में मोड़े,
ना जाने फिर मंज़िलों के
रास्ते आसान मिले या नहीं।










Monday 6 February 2017

कश्ती लहरों से डरकर टिक नहीं सकती
टूटती जिंदगी कभी हार नहीं सकती 

तूफानों के सामने मिलते नहीं आसानी से किनारे 
होसलों की उड़ानों से किनारे भी छोटे पड़ जाते है


आशाओं की नावों पर पानी कभी भर नहीं सकता 
कोशिश करने वाले कभी असफ़ल नहीं हो सकते 

मीलों फैले समंदर की सुनामी में 
उम्मीदों के जहाज़ कभी डूबते नहीं
                       
चिड़िया दाने दाने चुनकर कभी थकती नहीं
हारती जिंदगियों के सफर कभी थमते नहीं

पहाड़ो की रुकावटों से नदियां कभी रूकती नहीं
मंज़िलों के रास्ते आसान कभी बनते नहीं 

बिजली की गड़गड़ाहट से गगन कभी डरता नहीं 
हिम्मत की गाडी रास्ते से कभी भटकती नहीं



















Saturday 4 February 2017

हारती ज़िन्दगी के कुछ पहर बीत जाएंगे 
कुछ नए मौक़े फिर जीत का पहरा लाएंगे  
ज़िन्दगी के नए रंग समेंटे नयी रौशनी 
 फिर ज़िन्दगी के कुछ पहर बन जायेंगे 
                                - तरुण शर्मा