Friday 14 April 2023

अनसुलझा ये पल है 
हूँ मैं कहीं खोया हुआ सा 
ये लम्हे खफा जो है 
हवाओं की साज़िश में 
बिख़रे हम कहीं 
किनारे ख़ामोश बैठे है 
और आवारा सफर 
यूँ सुकून एक दस्तख़त है 

Saturday 18 March 2023

अलसाये सा हूँ 

अलमस्त मेरे ये ख़्याल 

कुछ तो मैं बोलूं 

मगर चुप सी ख़ानाबदोश 

ये हवायें 

कहाँ चुप सा रहूं 

ये धुन जो उनींदे से जगा रही है 

कल क्या हो किसको फिकर है 

ठौर ठिकाने से दूर 

यूँ ही अब मैं बैरागी सा जियूं

राहों में मलंग मलंग फिरता जाऊं







Tuesday 7 February 2023

सपने हर कोई देखता है 
मगर ख़्वाबों का ये कैनवास, कहूं तो 
इक्का दुक्का आदमी ही मुक़म्मल ओढ़ पाता है 
ये तो ख़्याल है जिन्हे बोरियत नहीं होती 
मैं तो कबका सर्द मौसम की रजाई ओढ़े बैठा हूँ 
जाने कौन सुने हर किसी की दास्ताँ 
सपने तो मेरे भी है 
दिल भी टूट ही गया है कही 
मगर मुंडेर पे बैठ, सपने है देख लेते है 
क्यों की सपने हर कोई देखता है