Tuesday 30 June 2015
Saturday 27 June 2015
Dedicated to My Father
कितनी हसीन थी वो रात, जब हम देर रात से सोते
तब उस अँधेरी रात में एक चहकने की आवाज़ आती
पता नहीं वो आपकी डाँट थी या प्यार पर ,वो रात भी हसीन थी
कितने गजब थे वो दिन, जब हम देर से सोके उठते
और एक चिल्लाने की आवाज़,पर उस एक आवाज़ में भी प्यार था
कहाँ खो गए । पापा
ज़िंदगी के वो अहम पल,जब हम अपना परिणाम फल
लेके जाते कोई न कोई बहाने से,काँपती थी रूँह धड़कता था दिल
फिर भी उस एक आवाज़ में हम जी जहाँ उठते
कहाँ खो गए । पापा
उन अँधेरे रास्तो पर जब माचिस की सारी तिल्लियाँ बुझ जाया करती
तब एक तिल्ली जलती इन अँधेरे रास्तो में
जब जरुरत थी दुनिया से लड़ने की,छोड़ चले इन कांटे भरे पथ पर
न हारूँगा,न अविश्वास होंगा,इस अडिग रस्ते पर
आपकी दिखाई तिल्लियो को,मैं कभी बुझने नहीं दूंगा
कहाँ खो गए। पापा
- तरुण शर्मा
Friday 26 June 2015
Wednesday 24 June 2015
poetry with tarun
लम्हें
दौड रही कशिश इन लहरों में ,
मैं दूर हूँ ,कैसे इन शहरो से ,
झाँक रही मुहब्बत,इन दिल के तहखानो से,
कट रही रातें ,बंद पड़े इन लफ्जो में,
ये लम्हें कैसे है
ये तेरा दिल समझता है ,
ये मेरा दिल समझता है
तुम हमसे दूर हो कैसी
हम तुमसे दुर है कैसे
मगर गम में है हम भी
मगर गम में हो तुम भी
पूछ रही दुनिया ,कायदे मुहब्बत के
लूटा कर शोहरतें ,खुश हैं हम भी
खुश हो तुम भी
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