Monday 1 August 2016

कश्ती आज नहीं तो कल
किनारे ढूंढ हीं लेंगी
मंज़िले आज नहीं तो कल
अपना रास्ता तलाश लेंगी
नाकामयाब कोशिशें फिर
कामयाब बुलंदियों को छू लेंगी
आशाओं को डोर टूटने मत दे
हौशलों की उड़ाने गिरने मत दे
उम्मीदों के दामन छूटने मत दे 
बांध ले हिम्मत फिर से
कर ले कोशिश एक बार फिर
क्यों की, आज नहीं तो कल
कश्ती किनारे ढूंढ हीं लेंगी
                               
                     - तरुण शर्मा 

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