Monday 20 April 2020

जरा धुप लगने दो

किसी ने रखी है अजीब सी दास्तान
सुखाने छत की मुंडेर पे
बड़ी नरम, कमजोर सी
शिकस्ता हाल उदास भी
भीगी भीगी कही काई जमी हुई
दीमक भी चट कर गयी
और ना जाने क्या क्या
हट जाओ ,जरा धुप लगने दो

गुड़ की डेहलि मगर जरूर थी
महकती डगरिया इस आलम में भी
इस मोहलिक हवा में ना जाने कब सूखेगी
और तो और सूखेगी की भी नहीं
हट जाओ फिर भी जरा धुप लगने दो.....


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