जरा धुप लगने दो
किसी ने रखी है अजीब सी दास्तान
सुखाने छत की मुंडेर पे
बड़ी नरम, कमजोर सी
शिकस्ता हाल उदास भी
भीगी भीगी कही काई जमी हुई
दीमक भी चट कर गयी
और ना जाने क्या क्या
हट जाओ ,जरा धुप लगने दो
गुड़ की डेहलि मगर जरूर थी
महकती डगरिया इस आलम में भी
इस मोहलिक हवा में ना जाने कब सूखेगी
और तो और सूखेगी की भी नहीं
हट जाओ फिर भी जरा धुप लगने दो.....
किसी ने रखी है अजीब सी दास्तान
सुखाने छत की मुंडेर पे
बड़ी नरम, कमजोर सी
शिकस्ता हाल उदास भी
भीगी भीगी कही काई जमी हुई
दीमक भी चट कर गयी
और ना जाने क्या क्या
हट जाओ ,जरा धुप लगने दो
गुड़ की डेहलि मगर जरूर थी
महकती डगरिया इस आलम में भी
इस मोहलिक हवा में ना जाने कब सूखेगी
और तो और सूखेगी की भी नहीं
हट जाओ फिर भी जरा धुप लगने दो.....
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