Tuesday 14 July 2020

ज़िंदगी इक कारवाँ 

गुनगुना रही अल्हड़ सी शामें
शोर मचा रही ये ख्वाहिशें
राहों में जो हो रही है बदमाशियां
होने दे कुछ नयी नयी नादानियां 
उड़ते से ये बेफिक्रे मन
करने दे ख्यालो को पागलपन
होश में रहना है क्यूं
सवाल जब कल पे हो
बेहोशी में है मज़ा
नशे के ये जो पल हो
बेफिक्र ज़िंदगी
मलंग सी ख्वाहिश लिए
गम सारे भुला के रास्तें यूँ चल दिए

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