उलझी है ख्वाहिशें
सुलझाने को हम
निकल पड़े है दूर
दूर कहीं खुले आसमां में
बेफिक्रे से ये जहां में
सरसराती हवाओं में
उड़ते फिसलते से
खोये खोये
बचकाने बहके ख्यालों में
चल पड़े है हम
ये रास्ते
जाना कहाँ
किसको पता
ये पता लापता ही सही
गुजरते कुछ अनकहे
ये मौसम नये से है
सांसो को थामे
हर पल ढूंढे बेताब बंजारे
ये पल जो नये से है
खुलते लम्हे
अलसायी शामों में
मिलते सफर से
सुकून के दो पहरे
जैसे बादल बरसे
खानाबदोश दिल पे
मंज़िल मेरी कहाँ ?
फिकरे कल की क्या
कल के किस्सों में
क्यों रहना
नये नये फ़साने उड़ते
मिलते राहों में है खुलते
ये सफर भी कुछ अजीब सा है
जाने कहाँ से है शुरू
कहाँ हो खत्म
ये पल कुछ अनोखा है
ये सफर बस एक झोका है
इन निगाहें में चढ़ते गए
मंज़र नये नये
और बनता गया
ये कारवाँ..........
Ye man kabhi sambhalta hi nahi
Saanse ab meri Bekabu si rahi
Jaane kaisa khumar hai
dil pe chadha
Khanabadosh raho pe hi
Kyu ye chal pada
Ye manzar mere rang sa hai
Befikar Udta chadta parinda
Ye jahan saara malang sa hai
Ye savera hai naya
Manmauji lfange
Safar me chhipi kaisi ye dhun hai
Fikre saari kahan gum hai
Begani raho pe dhundhti bechaniya
Milo door Door tak bas meri betabiyan
Rubooru ye shahar ye gaon
Ye banshide ye gharonde
Chhode hai saare sapne
Tumhare ab hai Hawale
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