Tuesday 7 February 2023

सपने हर कोई देखता है 
मगर ख़्वाबों का ये कैनवास, कहूं तो 
इक्का दुक्का आदमी ही मुक़म्मल ओढ़ पाता है 
ये तो ख़्याल है जिन्हे बोरियत नहीं होती 
मैं तो कबका सर्द मौसम की रजाई ओढ़े बैठा हूँ 
जाने कौन सुने हर किसी की दास्ताँ 
सपने तो मेरे भी है 
दिल भी टूट ही गया है कही 
मगर मुंडेर पे बैठ, सपने है देख लेते है 
क्यों की सपने हर कोई देखता है 

No comments:

Post a Comment