Tarun Sharma
Friday 3 July 2015
Zindgii
ज़िंदगी एक पतंग है
छू रही गगन, पाने साहिलों को
फकत गुलजार है समीरो में उड़ के
न जाने कब कट जाए डोर इसकी
उड़ रही आशा की एक किरण में
- तरुण शर्मा
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