नन्हे हाथों से बनी वो कागज की नावें
जो कभी थी बचपन की धुंधली यादें
उन चुस्त गलियों में था कभी बल्लों का शोर
जिस गली में था शर्मा अंकल के घर का झोर
नुक्कड़ की चाय का भी अपना अजीब रंग था
जब ठहाकों से भरा मित्र मण्डली का संग था
कुछ आम के पेड़ों की डालिया तभी टूटती थी
जब दोस्तों की टोलियां उस पर छूटती थी
जब जब बॉल लाने की बारी हमारी हुआ करती थी
तभी शुक्ला अंकल के कुत्ते की रखवाली हुआ करती थी
कुछ दोस्तों के टिफ़िन कभी बचते नहीं थे
क्यों की कुछ यारों के पेट कभी भरते नहीं थे
हमेशा स्कूल के आने की घंटी सजा लगती थी
तो वही स्कूल के जाने की घंटी मजा लगती थी
जब इम्तिहान के दिन पास आया करते थे
तभी सब दोस्तों को फ़ोन जाया करते थे
गर्मियों में बर्फ के गोलों की चुस्कियों का मजा भी अलग था
पर उसके लिए घरवालों से पैसे लेने की सजा भी अलग थी
जब हैरी पॉटर की जादुई दुनिया में इतने खो जाते थे
पता नहीं कब जादु के सपने देखते देखते सो जाते थे
रविवार का इंतज़ार जब सोमवार से ही शुरू हो जाता था
तब पता नहीं रविवार कब सोमवार में बदल जाता था
जब सारा सारा दिन मारियो खेलने में निकल जाता था
तो वही रात घरवालों की फटकार में गुजर जाया करती थी
जो कभी थी बचपन की धुंधली यादें
उन चुस्त गलियों में था कभी बल्लों का शोर
जिस गली में था शर्मा अंकल के घर का झोर
नुक्कड़ की चाय का भी अपना अजीब रंग था
जब ठहाकों से भरा मित्र मण्डली का संग था
कुछ आम के पेड़ों की डालिया तभी टूटती थी
जब दोस्तों की टोलियां उस पर छूटती थी
जब जब बॉल लाने की बारी हमारी हुआ करती थी
तभी शुक्ला अंकल के कुत्ते की रखवाली हुआ करती थी
कुछ दोस्तों के टिफ़िन कभी बचते नहीं थे
क्यों की कुछ यारों के पेट कभी भरते नहीं थे
हमेशा स्कूल के आने की घंटी सजा लगती थी
तो वही स्कूल के जाने की घंटी मजा लगती थी
जब इम्तिहान के दिन पास आया करते थे
तभी सब दोस्तों को फ़ोन जाया करते थे
गर्मियों में बर्फ के गोलों की चुस्कियों का मजा भी अलग था
पर उसके लिए घरवालों से पैसे लेने की सजा भी अलग थी
जब हैरी पॉटर की जादुई दुनिया में इतने खो जाते थे
पता नहीं कब जादु के सपने देखते देखते सो जाते थे
रविवार का इंतज़ार जब सोमवार से ही शुरू हो जाता था
तब पता नहीं रविवार कब सोमवार में बदल जाता था
जब सारा सारा दिन मारियो खेलने में निकल जाता था
तो वही रात घरवालों की फटकार में गुजर जाया करती थी
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