Tuesday 14 February 2017

किस जीत की राह देख रहा है तू 
जिस रणभूमि में कदम तेरे नहीं 
जिस युद्ध में तू आजतक दिखा नहीं 
उस रण के मैदान में कभी लड़ा नहीं 
मृत्यु के भय से छोड़ दिया जो संग्राम
उस युद्ध के चक्रव्यूह में जो फंस गया 
रणभूमि की रणनीति को समझा नहीं
गढ़ की दीवारों को जो भेद नहीं सका 
अहंकार के हठ में दो गज जंमीन भी 
दुश्मनो से तू कभी हड़प नहीं पाया 
जिस गढ़ को फतह करने के सपने 
सँजो रहा है जो तुझे कभी मिलेगा नहीं 




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