Sunday 21 June 2020

गिरता आज एक धूमकेतु देखा 

यादों पे गुजरता
गिरता आज एक धूमकेतु देखा

जाने देहरी पे खजाने सा गड़ा
क्यों ताउम्र ये पिंड छोड़ गया
जिसकी सतह पे जमे
खुशियों के बेहिसाब कण
हक़ से मंज़िल खींच
ख्वाबों के नुक्लेओस

सूरज की तमाम तपिश लील किये
फटा सूती चोला ओढ़े
जाने ये फरिश्ता किस ओर चला गया

आज फिर यूँ लगा
चिलचिलाती ज़िंदगी पे
धूमिल से गया ये सुपरनोवा

कश्मकश चेहरे की उदास ख़ामोशी देख
अनगिनित सितारों तले मशक्कत
फिर एक उम्मीद का उजला पुच्छल तारा
फिर मेरे अब्बा ने मेरे लिए भेजा है
देखना इक रोज़ तुम भी
मेरे इस तथ्य को सच मानोगे 

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