Sunday 7 June 2020

मलंग सा बैरागी जियूं

 छोटा सा है मेरा फ़साना
 किस को क्या बताना
 इसे क्या सुनाना

 उड़ती आवारा सी धुन पे
 बस चला जा रहा हूँ
 गाते नगमों के साथ
 फिकरे उडाता जा रहा हूँ

 छूटी है ख्वाहिशें राहो पे कहीं
 रास्तो से अब पूछना क्या
 ये पता लापता ही सही

 मंज़िल का तो अता पता नहीं
 सुरंग पे सुरंग चले जा रहा हूँ
 ख्वाहिशों का पिटारा लिए
 काफिलों के हवाले करते जा रहा हूँ

 हाथो पर आयी खुलके ये शामें
 रुबरू हुआ हूँ मैं अब खुद से खुद को जाना हूँ
 ओझल सी जी ली बहुत ये ज़िंदगी
 मंज़र के कश भर अब तो नशे में बिताऊंगा

 मैं ही अपने दिल का हौसला हूँ
 बागी हवाओं में खुद को संभाला हूँ
 यूँ ही अब मैं बैरागी सा जियूं
 राहों में मलंग मलंग फिरता जाऊं






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