Saturday 6 June 2020

 आखिर पहुँच ही गया

 दिल में अपनी बेताबी समेटे
 कबीलों से लड़ झगड़कर
 अपने ख्वाबों की चाबी लेके

 दूर आसमां के परे
 उलझे सितारों के तले
 अकेला कदम कदम बदलता
 सूरज में पिघलता
 कुछ पाने की आस में
 कश्ती की चढ़ती सांस में
 सवार, हाथ में एक पतवार

 हौले हौले ज़िंदगी सुलगते हुए
 बुलबुले पे रख फिकरे उडाते हुए
 बहाने पे बहाने यही छूमंतर कर
 आँखों में ये ही जंतर मंतर भर

 रास्तों का हौसला चुरा के
 अपनी धुन का पंख लगा के
 आखिर पहुँच ही गया
 अपने गंतव्य स्टेशन पर





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