Tuesday 23 June 2020

क्या आलम है! गड़हों पे टक 

चौखट से लगती सँकरी गली
खुलती मेन सड़क पे
सड़क से सटे फुटपाथ पे
किवाड़ पे साँकर डाले
तर-बतर बिकाऊ चीज़ पे छज्जा खींच
दुबके सावन से बचते पॉटर!

बाहर इक्का दुक्का ही
मोम की बरसाती से ढंके
बचे खुले आसमां तले भीगते
टेराकोटा की जमी क्यारियों पे
आती बौछारों की छड़ी
भीनी भीनी सोंधी खुशबुएँ
जमे रास्ते से गुजर रहा हूँ
वाकई क्या आलम है! गड़हों पे टक

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